मैंने गाँधी को देखा है अंधेरे गलियारों में सिसकिया भरते हुए ।
जब जब असत्य जहर बन कर फैला है , जब जब अन्याय कहर बन कर टूटा है ,
जब जब चली हैं गोलियां ,जब देवियों की लगी हैं बोलियाँ
मैंने गाँधी को देखा है ।
जब जब गिरी हैं निर्दोष लाशें ,जब जब हुए हैं दंगे बेतहाशे
जब जब हुए अत्याचार असहनीय ,जब अपराधी ही बन बैठे माननीय ।
मैंने गाँधी को देखा है ।
अंधेरे गलियारों में सिसकियाँ भरते हुए ।
अपनी लाठी पीटते हुए ।
क्या तुमने नही देखा ?
c@ written by-
Ravi nitesh
ravinitesh@gmail.com
(रवि नितेश )
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